Saturday, November 15, 2008

मेरा पहला कदम................................."दो आँसू"

बात २००१-२००२ की है, जब मैं १२वी में था। मेरे स्कूल में १५ अगस्त,२००१ को एक कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ था और उसमे विद्यार्थियों को भी पड़ने के लिए आमंत्रित किया गया था मगर शर्त थी अगर वो अपना कुछ लिखते हो। मुझे उस दिन एहसास हुआ की काश अगर मेरी भी कुछ कवितायेँ होती तो शायद मैं भी उन लोगो के साथ मंच पे होता। लिखने की रूचि मेरी पहले से थी लेकिन पहले मैं निबंध लिखता था और कई प्रतियोगिताएं भी जीता था। मगर कविता लिखना एक अलग विधा थी। मगर उस दिन की घटना का मुझे काफ़ी अफ़सोस हो रहा था और मैं उस कवि-सम्मलेन को सुनने के लिए भी नही गया। शायद यही मैंने अच्छा काम किया, अब आप सोच रहे होंगे ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ। दरअसल मेरे अन्दर एक रचना(कविता) आकर ले रही थी और शाम को जिस वक्त स्कूल में कवि-सम्मलेन हो रहा था, उसी वक्त मैंने अपने जीवन की पहली कविता लिखी।
उस कविता का शीर्षक था ............ "दो आँसू"
और वो कविता ये है..............

जीवन है एक दिया हम उसकी बाती हैं।
समर्पण है लौ उसकी, बाती को जो जलाती है।
क्षितिज को आज तक कौन छू पाया है।
ढूँढ़ते है इश्वर को वो तो दिल में समाया है।
हर पल है चलना हमको और चलते जाना है।
इन सिमटी हुई राहों पे ही उम्मीदों का महल बनाना है।
काफी नही है इतना और भी कुछ करना है।
आज जन्म हुआ है तो कल सभी को मरना है।
तमन्ना नही की दुनिया में मेरा नाम हो सके।
आरजू है बस इतनी मेरे जाने के बाद,
मुझ पर कोई "दो आंसू" रो सके।

उसके बाद ये सिलसिला चल पड़ा मगर उसमे भी बहुत सी कहानियाँ है, की कब मैंने कविताओं का दामन छोड़ के ग़ज़ल का आँचल थाम लिया। वो आगे कभी...............

3 comments:

  1. "आरजू है बस इतनी मेरे जाने के बाद,
    मुझ पर कोई "दो आंसू" रो सके"
    ये पक्तिंया दिल को छू गई। इस कविता को पोस्ट करने से पहले जो अपना अनुभव आपने बयां किया, उसने भावनाओं की गहराई और बढ़ा दी है।
    शुभकामनाएं... यूं ही लिखते रहे।

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  2. नववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना

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